Thursday, December 27, 2012

Jo Beet Gayi, So Baat Gayi

Bachchan is one of the most prolific poets I have read, and many (or perhaps most!) of his poems have a beautiful, lyrical, almost song-like quality. While poems written in one phase of his life demonstrate a lost hope, another phase echoes finding that hope again. Posting a beautiful song of this hope, that we came across in school many years ago ....
जो बीत गई सो बात गई
  - हरिवंश राय बच्चन 

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गय
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूट
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है

जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है

जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है

जो बीत गई सो बात गई

2 comments:

Puja Upadhyay said...

मेरी कुछ पसंदीदा कविताओं में से एक ये भी है...एक और की कुछ पंक्तियाँ यहाँ चिपका रही हूँ :)
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जब इतनी रसमय ध्वनियों का अवसान प्रिये हो जाएगा
तब शुष्क हमारे कंठों का उदगार न जाने क्या होगा
इस पार प्रिये मधु है तुम हो...उस पार न जाने क्या होगा
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बच्चन की कवितायेँ गाहे बगाहे ढूंढ लेती हैं हमें, कुछ दूर हाथ पकड़ कर चलती हैं, अँधेरी रात में रास्ता दिखाते ध्रुव तारे सी...स्थिर, अटल, अनंत.

बच्चन मेरे पापा को भी बहुत पसंद थे...मुझे भी बहुत पसंद हैं, नयी पीढ़ी में भी बहुतों को उन्हें पसंद करते देखा है. अच्छा लगा...आज यहाँ साल के अंत में उन्हें देखना.

Sigma said...

धन्यवाद् पूजा! 'जो बीत गयी सो बात गयी' मुझे से बहुत पसंद है जब मैंने इसे पहली बार पढ़ा था, और 'इस पार उस पार' भी मेरी पसंदीदा कविताओं में से है। सचमुच बच्चन जी की बहुत से कवितायेँ ऐसी हैं जो दिल और दिमाग दोनों से निकल पाना बहुत मुश्किल है :-) उनकी जो कविता मुझे शायद सबसे अधिक पसंद है, वह है 'मेरा संबल' - बहुत ही संक्षिप्त और सटीक!